देश की आज़ादी की प्रेरणा बन चुका राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम्’ आज एक बार फिर नई ऊर्जा के साथ गूंज उठा। इसके 150 वर्ष पूरे होने के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को ‘वंदे मातरम् वर्ष’ का शुभारंभ किया। इस मौके पर उन्होंने एक विशेष स्मारक डाक टिकट और स्मारक सिक्का जारी किया तथा एक समर्पित वेबसाइट लॉन्च की, जो सालभर चलने वाले समारोहों का केंद्र बनेगी।
गुलाबी सर्द हवाओं के बीच दिल्ली के इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में आयोजित इस मुख्य समारोह में ‘वंदे मातरम्’ के स्वर पूरे स्टेडियम में गूंज उठे। देश के विभिन्न हिस्सों से आए कलाकारों ने ‘वंदे मातरम् – नाद एकम, रूपम अनेक’ कार्यक्रम के तहत भारतीय शास्त्रीय और कर्नाटक संगीत शैलियों में राष्ट्रगीत की अद्भुत प्रस्तुति दी।
प्रधानमंत्री मोदी ने इस अवसर पर कहा कि “वंदे मातरम् केवल एक गीत नहीं, बल्कि भारत की आत्मा का स्वर है। यह उस काल की पुकार थी जब देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था, और आज यह आज़ाद भारत की ऊर्जा, आत्मविश्वास और एकता का प्रतीक है।”
मोदी ने कहा कि बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा रचित यह गीत भारतीय समाज में स्वतंत्रता की चेतना जगाने वाला था। उन्होंने याद दिलाया कि 1937 में वंदे मातरम् के कुछ हिस्से हटाए गए थे — एक निर्णय जिसने आगे चलकर विभाजन की मानसिकता को जन्म दिया। प्रधानमंत्री ने कहा, “आज वही विभाजनकारी सोच फिर से समाज में नफरत फैलाने की कोशिश करती है, लेकिन नया भारत अब उस सोच को स्वीकार नहीं करेगा।”
वंदे मातरम् – एक गीत जिसने गढ़ा राष्ट्र का इतिहास
‘वंदे मातरम्’ को पहली बार 7 नवंबर 1875 को बंकिम चंद्र चटर्जी ने अपनी पत्रिका बंग दर्शन में प्रकाशित किया था। बाद में यह उनके प्रसिद्ध उपन्यास ‘आनंदमठ’ का हिस्सा बना।
1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में रवींद्रनाथ टैगोर ने जब मंच से इसे गाया, तो हजारों की भीड़ भावुक हो उठी — और वहीं से यह गीत एक आंदोलन बन गया।
1905 में बंगाल विभाजन के विरोध में ‘वंदे मातरम्’ ने पूरे देश को एक सूत्र में बांध दिया। ब्रिटिश हुकूमत ने जब इस गीत पर प्रतिबंध लगाया, तब छात्रों ने कक्षाएं छोड़ दीं, रैलियां निकालीं और नारे लगाए। उस दौर में 200 छात्रों पर पाँच-पाँच रुपये का जुर्माना लगाया गया — लेकिन किसी ने डर नहीं दिखाया।
24 जनवरी 1950 को संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने इस गीत के महत्व को स्वीकार करते हुए कहा था — “वंदे मातरम् ने स्वतंत्रता संग्राम में अमर भूमिका निभाई है, इसे जन गण मन के समान सम्मान दिया जाएगा।”
तभी से ‘वंदे मातरम्’ को भारत का राष्ट्रगीत घोषित किया गया।
वंदे मातरम् से वंदन तक – नया भारत, नई चेतना
एक दौर था जब इस गीत के टुकड़े किए गए, लेकिन आज का भारत दुर्गा की तरह एकजुट होकर खड़ा है। यह गीत न केवल स्वतंत्रता की प्रेरणा बना, बल्कि आत्मनिर्भर भारत की भावना का भी प्रतीक है।
150 वर्ष बाद, वंदे मातरम् फिर से देश की आत्मा में गूंज रहा है — एक स्वर जो हर भारतीय के हृदय में राष्ट्रप्रेम की लौ जलाता है।
